सुबह से ही मेरी सास बहुत परेशान थी।
दीदी के फोन पर फोन आ रहे थे।
शायद फिर कुछ हुआ था उनकी ससुराल में।
मैं रसोई बना रही थी, तभी मेरी सास वहाँ आ पहुँचीं
और अपनी सारी भड़ास तनु के रूप में मुझ पर निकाल दीं।
“मेरी बेटी ने सुबह से एक निवाला अपने मुँह में नहीं डाला और यह महारानी यहाँ 56 भोग बना रही है।
रेनू, तुझे ज़रा भी लाज नहीं आया क्या?
वहाँ तेरी ननद का रो-रो कर बुरा हाल है और यहाँ तेरे पेट में आग लगी हुई है।
हाय रे मेरी बेटी को कैसी सास मिली है !”
मेरे मुँह से कुछ न निकाला,
मैं अपने कमरे में आकर रोने लगी।
एक महीने बाद मेरी डिलीवरी डेट थी,
लेकिन किसी को इस बात से कोई लेना-देना नहीं था
कि मुझे भी भूख लग सकती है।
मेरी नहीं तो उस नन्हे बच्चे का तो सोचो—
जो तुम्हारा ही खून है।
मैं रोते-रोते ही सो गई।
पूरा दिन घर में मातम छाया रहा,
जो कि शाम को दीदी के फोन पर यह बताने के बाद ही सामान्य हुआ
कि वहाँ अब सब ठीक है।
वैसे यह घटना हमारे घर में चार-पाँच दिन में एक बार तो घट ही जाती थी।
मेरी दोनों ननदें—एक बड़ी और एक छोटी—शादीशुदा थीं।
वैसे तो उनका ससुराल भी सब ससुरालों की तरह ही था,
लेकिन जब भी उनकी ससुराल में कोई आँधी आती,
तो हमारे घर में तूफ़ान आ जाता।
और सारा गुस्सा मुझ पर ही निकलता था,
जैसे मैं इस घर की पंचिंग बैग हूँ।
ऐसे ही एक दिन मेरी बड़ी ननद हमारे घर आकर
अपने ससुराल का रोना रो रही थी।
जैसे ही मैं सबके लिए चाय लेकर पहुँची,
तो मेरी सास के ताने शुरू हो गए—
**“देख, अपनी दीदी को… कितनी कमजोर हो गई है।
सुबह 5 बजे उठकर घर के कामों में जुट जाती है
और रात को 12 बजे तक खपती रहती है।
तू तो बड़ी किस्मत वाली है
जो तुझे इतना अच्छा ससुराल मिला है।
लेट उठना, टाइम पर खाना-पीना, सोना… सब मिल जाता है।
कुछ सीखो अपनी ननद से।
इसके जैसा ससुराल मिल जाता,
तो कब की आत्महत्या कर लेती तुम!”**
इस बार मुझसे रहा नहीं गया।
मैंने भी सबके सामने मुँह खोल ही दिया—
**“मम्मी जी, दोनों दीदियों का ससुराल भी आपने और पापा जी ने ही ढूँढा है।
वो अच्छा है या बुरा, यह आपको ही देखना चाहिए था।
और रही बात दीदी के दुख-दर्द की,
तो उसका कारण मैं बिल्कुल नहीं हूँ।
कारण उनके ससुराल वाले और आप हैं।
आपको कोसना है तो अपने आप को कोसिए।
आज के बाद मैं यह सब नहीं सुनने वाली।”**
मेरा इतना बोलना था कि मेरी सास
मेरे पति शिवम से कहने लगीं—
**“देखो शिवम, तेरी बीवी मुझे ज़ुबान लड़ा रही है।
तेरी माँ से बदतमीज़ी कर रही है
और तेरी बड़ी बहन का अपमान कर रही है।
तूने ही सिर चढ़ा रखा है इसे इतनी।”**
अब शिवम की बारी थी बोलने की।
मैं मन ही मन डरी हुई थी कि वह क्या कहेंगे।
लेकिन उन्होंने वह कहा जिसकी मुझे कम ही उम्मीद थी—
**“देखो माँ, जीजी के साथ जो होता है,
उसका कारण रेनू नहीं है।
ना ही आप उन्हें और रेनू को बराबरी पर तौलें।
ऐसा नहीं है कि मुझे दिखाई नहीं देता
कि इतने दिनों से घर में क्या चल रहा है।
लेकिन मैं कोई बवाल खड़ा करना नहीं चाहता था।
पर अब बस!
अब मैं रेनू को और नहीं सुनने दूँगा।”**
मेरी आँखों से बस आँसुओं की धारा बह निकली।
शिवम मुझे लेकर हमारे कमरे में आ गए।
उस दिन के बाद मेरी सास मुझसे बहुत कम ही बात करती हैं
और ताने मारना तो उन्होंने बिल्कुल ही भूल गईं।