“वाह मम्मी, यह साड़ी तो बहुत जच रही है आप पर, कहां से लाई हो?”
“अरे बेटा, मैं कहां बाजार जाती हूं, पहले तू ला देती थी, अब तेरी भाभी ले आती है। सच में बहुत अच्छी पसंद है उसकी, देख तेरे लिए भी दो साड़ियां लाकर रखी हैं उसने। सच बेटा, हमारी किस्मत अच्छी है जो ऐसी समझदार बहू आई है। सारा घर संभाल लिया और मेरा भी कितना ख्याल रखती है। मैं करती कुछ नहीं, सारा दिन आगे-पीछे घूमती रहती है।”
मंजू जी ने अलमारी से साड़ियां निकालते हुए कहा।
“रहने दो मम्मी, आपको तो सब अच्छे ही लगते हैं, यह सब शुरू-शुरू के नखरे हैं। अभी तो आपके हाथ-पैर चल रहे हैं, बराबर काम करवाती हैं तो मम्मी करती रहती है। पता तो तब चलेगा जब सेवा करनी पड़ेगी। भगवान ऐसा क्यों करे कि मुझे सेवा की जरूरत पड़े, हाथ-पैर तो चलते ही ठीक हैं ना बेटा।”
मंजू जी ने बेटी की बात काटते हुए कहा।
लेकिन बेटी काव्या को अपनी भाभी की तारीफ सहन नहीं हो रही थी।
“और हां मम्मी, बहू को ज्यादा सिर मत चढ़ाओ, कहीं घर की चाबी मत पकड़ा देना, वरना बाद में आपको ही आंखें दिखाएगी।”
मंजू जी को समझ नहीं आ रहा था कि काव्या ऐसा व्यवहार क्यों कर रही है। जब भी उसकी भाभी अंजलि का जिक्र आता, वह चिढ़ जाती। अंजलि का किया हुआ कोई काम उसे पसंद नहीं आता था। जब कभी फोन पर मां-बेटी की बात होती, तो काव्या हमेशा अपनी भाभी के बारे में अपनी मां को उल्टा ही समझाती रहती थी।
लेकिन मंजू जी एक समझदार महिला थीं, अच्छे-बुरे की पहचान रखती थीं।
मंजू जी समझती थीं कि भाई-भाभी से ही बेटियों का मायका हमेशा बना रहता है, इसलिए उन्होंने काव्या को समझने की कोशिश की।
अब जब भी मंजू जी काव्या से फोन पर बात करतीं, तो अपनी बहू अंजलि की बुराई करतीं,
“बेटा, तेरी भाभी तो मेरी कदर ही नहीं करती, जब देखो, बात-बात में झगड़ा करती रहती है। अब तो मेरा एक भी काम नहीं करती, यहां तक कि मेरे कपड़े भी नहीं धोती।”
यह सब सुनकर काव्या बोली, “देखा ना मम्मी, मैं कहती थी ना कि भाभी सिर्फ अच्छा बनने का दिखावा करती है।”
कुछ दिनों तक तो काव्या को भी अच्छा लगता था अपनी भाभी की शिकायतें सुनना, लेकिन जब मंजू जी कहतीं कि तेरी भाभी मुझे समय पर खाना-पीना नहीं देती, तो काव्या को अपनी मां के लिए बुरा भी लगता।
एक दिन काव्या बोली,
“मम्मी, भाई से क्यों नहीं कहती कि भाभी को समझाएं? आखिर आप हमारी मम्मी हैं, घर की बड़ी हैं, आपका ख्याल रखना उनका फर्ज है। अगर आप कहें तो मैं भाभी से बात करती हूं, उन्हें समझने की कोशिश करती हूं।”
“लेकिन बेटा, तू भी तो यही चाहती थी ना कि तेरी भाभी ऐसी ही हो, जो रोज-रोज मुझसे झगड़ा करे, मेरी सेवा न करे? जब वो अच्छी थी, तब भी तुझे उससे शिकायत थी, तूने कभी उससे सीधे मुंह बात नहीं की। अब कैसे उससे कहेगी? ये सब हमारे कर्मों का ही फल है जो मैं भुगत रही हूं।”
मां की बात पर काव्या चुप हो गई, लेकिन मां की तकलीफ सुनकर उससे रहा नहीं गया। एक दिन वह गुस्से में अपने मायके पहुंच गई।
लेकिन वहां जाकर देखा तो माहौल बिल्कुल अलग था। मां और भाभी रसोई में हंस-हंसकर बातें कर रही थीं। गैस पर चाय बन रही थी और भाभी पकौड़े का घोल तैयार कर रही थी।
भाभी मां से पूछ रही थी, “मां, कौन से पकौड़े खाओगी, प्याज के?”
“अपनी बहू को प्याज के ही पकौड़े बना लेने दो, पनीर के पकौड़े मुझे हजम नहीं होते।”
अब दरवाजे पर खड़ी काव्या अपनी मां और भाभी को देखकर हैरान थी। मां तो बोलती थीं कि भाभी बदल गई है, मेरा बिल्कुल ख्याल नहीं रखती, लेकिन यहां तो सास-बहू के बीच कोई दूरी ही नहीं दिखती थी।
अंजलि की नजर जैसे ही अपनी ननद पर पड़ी, वह खुशी से चहक उठी,
“अरे दीदी, आप? बहुत दिनों बाद आई हैं, और वो भी अचानक!”
मंजू जी के चेहरे पर भी बेटी को देखकर मुस्कान छा गई।
मां को खुश देखकर काव्या के चेहरे पर भी खुशी छा गई।
जितनी देर वह मायके में रही, देखती रही कि भाभी मां के साथ कितनी प्यार से रहती है। उसने कभी अपनी भाभी से सीधे मुंह बात नहीं की, फिर भी भाभी उसके आगे-पीछे घूम रही थी।
अकेले में मंजू जी ने काव्या से बोला,
“बेटा, सच बता, तू यही चाहती थी ना कि तेरी भाभी मेरा ख्याल रखे? तो पहले तू अपनी भाभी से इतनी उखड़ी-उखड़ी क्यों रहती थी?”
“मम्मी, भाभी ने आते ही आपके जीवन में और इस घर में मेरी जगह ले ली थी, ये शायद मुझसे सहन नहीं हुआ। लेकिन अब मैं समझ गई हूं कि अगर भाभी अच्छी हो, तो मेरी मम्मी और मायका हमेशा खुश और आबाद रहेगा।”
इस बार वापसी के समय पहली बार काव्या अपनी भाभी अंजलि के गले से लगी, उसकी आंखों से दो बूंदें टपक गईं और उसके साथ ही मां का मन भी भर आया। उसके मुंह से बस यही शब्द निकले,
“भाभी, हमेशा ऐसे ही रहना।”
अंजलि भी ननद के इसने स्पर्श पाकर भाव-विभोर हो गई थी।